कोरोना का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकेगा


कोरोना का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकेगा

खाली पेट नंगे पांव
कैसे पहुंचा अपने गांव
हम सब याद रखेंगे

कोरोना महामारी के दौरान घोषित किए गए लॉकडाउन  में मजदूरों को मालिकों द्वारा सहयोग नहीं मिलने पर या उन्हें कार्य स्थल से निकाल दिए जाने अथवा घर की तरफ लौटने को लेकर जो पलायान हुआ, वह बहुत दर्दमंदाना साबित हुआ है। इस दर्द को मजदूरों की आने वाली कई पीढिय़ां भुला नहीं पाएगी।

इसी पलायन व घटनाओं को आधार बना कर फेसबुक और यूट्यूब पर संजोबा का गाया 1.36  मिनट का गीत बहुत तेजी से वायरल हो रहा है। इस गीत में कोरोना के दर्द की हकीकत को विडियो के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है। 

इस लघु गीत के माध्यम से कोरोना के कारण मजदूरों व श्रमिकों के दर्द को बहुत ही भावुक लहजे में प्रस्तुत किया गया है। जिसे यदि सही तरीके से सुनकर महसूस किया जाए तो हमारी भी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं।  

लघु गीत के माध्यम से पलायन के समय मजदूरों व श्रमिकों को भूखे-प्यासे रहकर हजारों किलोमीटर की पैदल यात्राएं करनी पड़ी। 

कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन से सड़कें सूनी थी, हाइवे पर कोई वाहन आता-जाता दिखाई नहीं देता। ऐसे में वे किससे मदद मांगते। सभी दुकान, गांव, शहर सूनसान हो चुके थे। इन सब घटनाओं को सजीव घटना की तरह दिखाने का प्रयास किया गया है।

लॉकडाउन के समय कई मिलोमीटर तक खाना तो दूर की बात, पानी तक नसीब नहीं हुआा, इधर गर्मी का मौसम, तेज धूप, लगातार चलने से जूते कट-फट चुके। ऐसे में कई किलोमीटर का सफर नंगे-पांव तक करना पड़ा। 

पांवों में फफोले होकर फूट गए, पांवों से खून तक बहने लगा, मगर फिर भी घर पहुंचने की होड़ में हर बाधाओं को सहन करते धर कूंचा, धर मंझला की रट लगाए अनवरत चलते रहे। दिन-रात लगातार चलते कई मजदूर श्रमिक थकान व अन्य कारणों से काल के शिकार बन गए, कोईभूख के कारण मरा तो कोई पटरियों पर चलते ट्रेन की चपेट में आया। 


इस विपदा की घड़ी में भूखे-प्यासे मजदूरों को कहीं पुलिस की लाठियां खाने को मिली तो कहीं - कहीं पर लोगों ने रोक कर नाश्ता, खाने-पीने का सामान भी बांटा। किसी मजदूर का अगर किस्मत ने साथ दिया तो कुछ दूरी तक किसी वाहन का सहारा भी मिला। 

एक श्रमिक अपने परिवार को बैलगाड़ी में लेकर गांव की तरफ रवाना हुआ तो रास्ते में एक बैल के मरने पर आगे का सफर स्वयं मरे बैल के स्थान पर जुत कर पूरा करता नजर आया।


कहां रूका और कहां पे सोया
क्या क्या सोचा, कितना रोया
आत्मनिर्भर हुई आंख पे
आग रखेंगे
हम सब याद रखेंगे

गांव की तरफ पलायन के सफर में उनके साथ छोटे-छोटे मासूम बालक भी थे, एक बालक तो पहिए वाले सूटकेस जिसको मां खींच रही है, उसी पर लेटकर नींद लेता दिखाई दिया, जिसका विडियो भी बहुत वायरल हुआ। इसी तरह की अनगिनत घटनाओं को गीत के साथ फोटो के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। छोटे से गीत में प्रदर्शित हर एक फोटो अपनी अलग-अलग कहानी बयान करता नजर आता है।

इस दर्दनाक व असहनीय पलायन में मजदूरों को न तो कहीं रूकने की जगह नसीब हुई और न ही सोने के लिए सही स्थान। जहां रात हुई, वहीं लेटकर समय काटा। इस तरह बहुत ही दुख के साथ पलायन का मंजर दिखाई दिया। साथ ही बताने का प्रयास किया गया हैं कि इस महामारी के जुल्म को रहती दुनिया तक भुलाया नहीं जा सकेगा। इतना ही नहीं जिसने इस दंश को भोगा है वह तो चाहकर भी भुला नहीं सकेगा। गीत के अंत में बताने का प्रयास किया गया है कि इन सब घटनाओं का पूरा हिसाब रखा जाएगा। इसी की गवाही देती गीत की अंतिम लाइनें-

पाई पाई तेरे जुल्म का
हिसाब रखेंगे
हम सब याद रखेंगे


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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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