हजार महीनों से बेहतर है शबेकद्र की एक रात
अर्श पर धूम है, फर्श पर धूम है
है वो कौन बदबख्त जो महरूम है ?
इस्लाम धर्म में इमान, नमाज के बाद जिसकी सबसे ज्यादा अहमियत है वह है रोजा। एक सच्चे मुसलमान पर साल में एक महिने रोजे रखना फर्ज (आवश्यक) है। बिना किसी ठोस कारण के रोजा नहीं छोड़ सकते।
रोजा इन्सान मेें भूक-प्यास सहन करने की शक्ति पैदा करता है और साथ ही रोजे रखने वाले को यह अहसास भी कराता हैं कि भूक व प्यास क्या होती है ? रोजा रखकर उसे मालूम पड़ जाता हैं कि इंसानी जिंदगी में खाने-पानी की क्या अहमियत है। इसी कारण वह जब भी किसी भी गरीब, मजबूर को देखता हैं तो उसके दिल में उनके प्रति प्रेम की भावना उमड़ पड़ती है और वह उनकी मदद के लिए आगे बढ़ता है।
रमजान का महिना वैसे तो पूरा ही खुशियों व बेशुमार नेअमतों से भरा हुआ है मगर इसमें एक ऐसी रात भी आती है, जिसे हजार महीनों से बेहतर (अच्छा) करार दिया गया है। उस रात में की गई इबादतों का सवाब (फल) बहुत बढ़ा दिया जाता है। उस रात का नाम है शबेकद्र।
बहुत ही अहमियत वाली रात है शबेकद्र
शबे कद्र के बारे में मशहूर हैं कि इस रात हजरते जिबरइल अलैहिस्सलाम (एक मशहूर फरिश्ते जो खुदा की तरफ से भेजी जाने वाले फरमान को लाकर पैगम्बर सल्लल्लाहो तआला अलैह वसल्लम तक पहुंचाने का काम करते थे।) 70 हजार फरिश्तों के साथ नूरी झण्डा लेकर दुनिया में आते हैं। एक झण्डा काबा शरीफ, दूसरा झण्डा रोजा-ए-रसूल, तीसरा बैतुल मुकद्दस व चौथा झण्डा तूरे सीना की मस्जिद में गाड कर सारी दुनिया में फैल जाते हैं। रात भर मोमिनों के बख्शीश के लिए दुआ करते हैं और फज्र के वक्त चले जाते हैं।
''हमने कुरआन को इज्जत व हुरमत (खूबसूरत व नूर-चमकदार) वाली रात में उतारा, और तुम क्या जानों के इज्जत वाली रात क्या है ? इज्जत और हुरमत वाली रात हजार महीनों से बेहतर है। जिसमें फरिश्ते और जिबरइल हुक्मे खुदा से अहकाम लेकर उतरते हैं। इस रात में तुलुए सुबह (सुबह की पहली किरण निकलने तक) तक सरासर सलामती है।'' इरशादे खुदाबन्दी (खुदा का फरमान)
''यह वो रात है जो जिसमे रब की बरकतों की सबसे पहले बारिस हुई। यही वो रात है जिसमें आसमानी रहमतों ने जमीन पर नुजुल किया। इसलिए हर मुसलमान का फर्ज हैं कि वह इस रात में खुदा की रहमतों का तालिब (मांगने वाला) हो। उस रहमानो-रहीम हस्ती के सामने अपने सरे तस्लीम को झुका दे और अपने सारे गुनाहों को आजिजी से रब्बे करीम के सामने माफी के लिए तलबगार हो। ''सूरह कद्र
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कुरआन मजीद इसी रात में नाजिल हुआ
शबेकद्र की रात की अहमियत (महत्व) इसलिए भी अधिक हैं क्योंकि इसी रात में इस्लाम धर्म की मुकद्दस किताब कुरआन मजीद दुनिया को सच्ची राह दिखाने व इंसानियत सिखाने के लिए दुनिया में उतारी गई। जिसमे हक और बातिल (सत्य और असत्य) का साफ-साफ बयान किया गया है। इस रात में एक नेकी (भलाई का काम) का बदला 70 से 700 गुना तक बढ़ा दिया जाता है।
बड़े मरतबे वाली रात है शबे कद्र
अरबी भाषा में रात को लयलतुल व मरतबे को कदरून कहते हैं, यानि बहुत ही इज्जत अथवा नेकियों वाली रात को लयलतुल-कद्र या शबेकद्र के नाम से जाना जाता है। रमजान के मुबारक महिने की सबसे बेहतरीन रात शबेकद्र कहलाती है। रब के प्यारे पैगम्बर व रसूल ने जानबूझकर शबे कद्र के लिए कोई खास रात नहीं बताई बल्कि फरमाया कि रमजानुल मुबारक के तीसरे अशरे यानि 21, 23, 25, 27 या 29 वीं रात में से कोई भी एक रात शबेकद्र हो सकती है। ऐसा इसलिए कहा गया ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा रातों में जागकर अपने खुदा की बंदगी कर सके। अगर कोई एक रात मुकर्रर कर दी जाती तो लोग उस रात को इबादत करके ऐसे बेखबर हो जाते कि साल भर इबादत करने की जरूरत ही महसूस नहीं करते।
हजार महीनों से बेहतर हैं शबेकद्र की एक रात
आमतोर पर यह मशहूर हैं कि रमजान की 27 वीं रात ही शबेकद्र की रात है, लेकिन यह बात यकीन से नहीं कही जा सकती। इसलिए सच्चे मुसलमान को हर रात में जागकर अपने खुदा से रहमत की भीख मांगनी चाहिए व अपने गुनाहों की माफी के लिए गिड़गिड़ाना चाहिए। क्योंकि शबेकद्र की एक रात में की गई इबादत दूसरे समय में लगातार एक हजार महीनों तक की गई इबादत से बढ़कर माना गया है।
मांग लो मांग लो चश्मे तर मांगलो
दर्दे दिल और हुस्ने नजर मांग लो
सब्ज गुंबद के साये में घर मांग लो
मांगने का मजा आज की रात है
कोई बदबख्त ही इस रात से महरूम रह सकता है
एक सच्चा मुसलमान इस रात का साल भर तक बेसब्री से इंतजार करता रहता है। इस रात की बरकतों का आलम यह है कि शायद ही कोई ऐसा मुसलमान बदबख्त (जिसका नसीब खराब हो) होगा जो इस रात का फायदा न उठा पाए, क्योंकि यह शबे कद्र की रात पूरा एक साल गुजरने के बाद वापस लौटकर आती है तब तक शायद जिन्दगी बाकी रहे या न रहे इसकी कोई गारन्टी नहीं। इसलिए हर मोमिन मर्द, औरत, बूढ़े, जवान, बच्चे इस रात की इबादत में सब कुछ भूलकर मसरूफ (मगन) हो जाते हैं।
फिर मिलेगी किसको ये सब,
किसको मालूम है ?
लुत्फे करम आज की रात है
इस रात क्या किया जाता है ?
इस रात के आने की खुशी में मस्जिदों व घरों को सजाया जाता हैं, बेहतरीन रोशनी का इंतजाम किया जाता है। लोग रात भर इबादते इलाही में मशगूल हो जाते हैं, क्योंकि कोई कमनसीब या बदबख्त ही होगा जो ऐसी नूर वाली रात की अहमियत न समझ सके। इस मौके पर नवाफिल नमाजे अदा की जाती है। बेहतरीन तकरीर व नात-ख्वानी पेश की जाती है। अपने बुजुर्गों व परिवार वालों की कब्रों पर जाकर उनकी बख्शीश और मगफिरत के लिए दुआ की जाती है। नबी की शान में सलातो-सलाम का नजराना पेश किया जाता है। हर तरफ अमन व शांति फैले इसके लिए दुआ की जाती है। जैसे-जैसे यह रात गुजरती है इसकी जुदाई में मोमिनों के दिल भी गमजदा होने लगते हैं। इस रात के बाद रमजानुल मुबारक भी मोमिनों के लिए चंद दिनों का मेहमान रह जाता है और धीरे-धीरे अलविदा की तरफ कदम बढ़ाने लग जाता है।
इस तरफ नूर है, उस तरफ नूर है
सारा आलम मुसर्रत से मामूर है
जिसको देखो आज वो ही मसरूफ है
महक उठी फिजा आज की रात है
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माशा अल्लाह त'आला
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा है
अल्लाह त'आला आप के इल्म में उम्र में बरकत अता फरमाए आमीन
Masha Allah
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