दिल्ली की प्रथम महिला मुस्लिम शासिका कौन थी ?
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दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाली पहली महिला मुस्लिम शासिका रजिया सुल्तान थी। जब दिल्ली के सुल्तान व रजिया के पिता शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को बीमारी के कारण मौत नजदीक दिखाई देने लगी तो उसने अपने पुत्र रूक्नुद्दीन फिरोज की बजाए अपनी पुत्री रजिया को दिल्ली की शासिका नियुक्त किया।
1236 ई में दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाली पहली महिला शासिका थी जिसने 1240 ई. तक दिल्ली पर शासन किया। उसने दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद एलान किया कि उसे ''रजिया सुल्तान'' के नाम से जाना जाए न कि ''रजिया सुल्ताना'' के नाम से।
दिल्ली की गद्दी संभालते ही उसने खुले मुंह दरबार में आना शुरू किया व एक पुरूष शासक की तरह गद्दी को संभाला जबकि उस दौर में महिलाएं हरम व पर्दे में रहा करती थी।
रजिया बचपन से ही महत्वाकांक्षी व तेज-तर्रार थी, उसने अस्त्र- शस्त्र चलाना बचपन में ही सीख लिया था, उसने कई युद्धों में भाग भी लिया। रजिया ने अपने राज्य में कानून की व्यवस्था को उचित ढंग से पेश किया। उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए कई इमारतो का निर्माण करवाया, सडकें बनवाई कुवे खुदवाए। राज्य में शिक्षा के स्तर को बढ़ावा देने के लिए विद्यालयों, खोज संस्थानों, पुस्तकालयों का निर्माण करवाया। उसने मुस्लिम शिक्षा के साथ-साथ हिन्दू शिक्षा पर भी उचित ध्यान दिया। कलाकारों, संगीतकारों को भी उसने प्रोत्सोहित किया व उनका सम्मान किया।
रजिया के गद्दी पर बैठने पर उस दौर के सरदारों व बड़े-बड़े ओहदेदारों ने इसका विरोध किया क्योंकि वे एक महिला के अधीन कार्य करने को शर्मिन्दगी भरा महसूस करते थे। मगर रजिया ने उनका बहुत ही चतुराई व कूटनीति से सामना किया। साथ ही उसने उन सरदारों के बीच संदेह पैदा कर आपस में फूट डलवा दी, जिससे उन्हें राजधानी छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ा और रजिया दिल्ली की गद्दी पर राज करती रही।
रजिया का सुल्तान बनने के बाद का पूरा जीवन संघर्ष से भरा रहा। दिल्ली की गद्दी पर बैठते ही उसे शक्तिशाली तुर्की सरदारों से मुकाबला करना पड़ा। रजिया का शासनकाल बहुत ही कम समय ३ वर्षों का ही रहा, मगर उस तीन वर्षों में किए कार्यों के कारण उसे इतिहास में सदा याद किया जाता रहेगा।दिल्ली की प्रथम महिला मुस्लिम शासिका कौन थी ?
उत्तर : दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाली पहली महिला मुस्लिम शासिका रजिया सुल्तान थी। जब दिल्ली के सुल्तान व रजिया के पिता शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को बीमारी के कारण मौत नजदीक दिखाई देने लगी तो उसने अपने पुत्र रूक्नुद्दीन फिरोज की बजाए अपनी पुत्री रजिया को दिल्ली की शासिका नियुक्त किया।
१२३६ ई में दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाली पहली महिला शासिका थी जिसने १२४०ई. तक दिल्ली पर शासन किया। उसने दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद एलान किया कि उसे रजिया सुल्तान के नाम से जाना जाए न कि रजिया सुल्ताना के नाम से।
दिल्ली की गद्दी संभालते ही उसने खुले मुंह दरबार में आना शुरू किया व एक पुरूष शासक की तरह गद्दी को संभाला जबकि उस दौर में महिलाएं हरम व पर्दे में रहा करती थी।
रजिया बचपन से ही महत्वाकांक्षी व तेज-तर्रार थी, उसने अस्त्र- शस्त्र चलाना बचपन में ही सीख लिया था, उसने कई युद्धों में भाग भी लिया। रजिया ने अपने राज्य में कानून की व्यवस्था को उचित ढंग से पेश किया। उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए कई इमारतो का निर्माण करवाया, सडकें बनवाई कुवे खुदवाए। राज्य में शिक्षा के स्तर को बढ़ावा देने के लिए विद्यालयों, खोज संस्थानों, पुस्तकालयों का निर्माण करवाया। उसने मुस्लिम शिक्षा के साथ-साथ हिन्दू शिक्षा पर भी उचित ध्यान दिया। कलाकारों, संगीतकारों को भी उसने प्रोत्सोहित किया व उनका सम्मान किया।
रजिया के गद्दी पर बैठने पर उस दौर के सरदारों व बड़े-बड़े ओहदेदारों ने इसका विरोध किया क्योंकि वे एक महिला के अधीन कार्य करने को शर्मिन्दगी भरा महसूस करते थे। मगर रजिया ने उनका बहुत ही चतुराई व कूटनीति से सामना किया। साथ ही उसने उन सरदारों के बीच संदेह पैदा कर आपस में फूट डलवा दी, जिससे उन्हें राजधानी छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ा और रजिया दिल्ली की गद्दी पर राज करती रही।
रजिया का सुल्तान बनने के बाद का पूरा जीवन संघर्ष से भरा रहा। दिल्ली की गद्दी पर बैठते ही उसे शक्तिशाली तुर्की सरदारों से मुकाबला करना पड़ा। रजिया का शासनकाल बहुत ही कम समय ३ वर्षों का ही रहा, मगर उस तीन वर्षों में किए कार्यों के कारण उसे इतिहास में सदा याद किया जाता रहेगा।
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