'' हर लम्हा, हर घड़ी पढ़ी जाती है नमाज ''
करबला के मैदान से आज भी आती है आवाज
कि तलवारों के साये में भी अदा होती है नमाज
इंसानियत का पैगाम देने वाले धर्म इस्लाम में अपने मजहब को सच्चे दिल से मानने वालों के लिए जो पांच बाते आवश्यक बताई है, उसमें नमाज का अहम रोल है। नमाज ऐसी इबादत हैं जिसे दिन में पांच बार अदा करना हर मुसलमान पर फर्ज किया गया है।
इस्लाम का दूसरा रूक्न नमाज है। नमाज शब्द फारसी का है। जो अरबी के सलात शब्द का पर्यायवाची है। कुरआन मजीद में सलात शब्द का जिक्र बार-बार आया है, यानि सच्चे मुसलमान मर्द और औरत (स्त्री-पुरूष) को ताकीद (आदेश) के साथ नमाज पढ़ने का हुक्म दिया गया है, प्रत्येक मुसलमान पर दिन में पांच बार नमाज पढ़ना फर्ज (आवश्यक) है।
इस्लाम का पहल रूक्न (स्तंभ) इमान की सलामती के बाद सबसे बेहतरीन व जरूरी रूक्न (स्तंभ) नमाज है। नमाज हुजूर ताजदारे मदीना सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से पहले वाले नबियों के उम्मतियों पर भी लाजिम थी और आप के उम्मती (जो हुजूर ताजदारे मदीना सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को नबी मानते हैं।) पर भी फर्ज है। नमाज किसी भी सूरत में माफ नहीं है। नमाज की अहमियत का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि नमाज का हुक्म कुरआन-ए-पाक में सात सौ मर्तबा (बार) आया है।
दिन में पांच बार मस्जिद से अजान की आवाज बुलन्द होती है, यानि नमाज की ओर आने की दावत दी जाती है। अजान अपने मुकर्रर (तय) वक्त पर ही मस्जिद से बुलन्द होती है। अजान की आवाज को सुनकर सच्चा मुसलमान सभी कामों को आराम देकर रजा-ए-खुदाबंदी (खुदा की इबादत) के लिए मस्जिद की ओर कदम बढ़ाकर पैगामे रसूल और मोमिन की मेराज (बहुमूल्य तोहफे) के लिए आता है और अपने सरे नयाज (सर) को खुदा की बारगाह में झुका लेता है।
इस्लाम में हर अरकान (आवश्यक कार्य) अपने मुकर्रर (तय) वक्त पर ही अदा होते हैं। जैसे रोजा साल मे एक महीने तक अदा किया जाता है। कुर्बानी साल में एक बार, इसी तरह हज भी जिन्दगी में एक बार अदा किया होता है, लेकिन नमाज एक ऐसी मुकम्मल इबादत है जो दिन में पांच बार अदा की जाती है।
नमाज किसी भी हालत में मुसलमान को माफ नहीं है। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखने पर यह मालूम होता हैं कि गुलामाने मुस्तफा (पैगम्बर साहब के गुलाम) ने अपने सरों को इंसानियत की राह में कटवा तो लिया मगर अपनी नमाज को कभी कजा (छूटने) नहीं होने दिया।
करबला के मैदान में नवासा-ए-रसूल (पैगम्बर साहब के दोहिते) इमामे हुसैन दुश्मनों से लड़कर बुरी तरह जख्मी (घायल) हो चुके थे, उनके शरीर पर 113 सुराख़ (छेद) तीरों के थे, 33 ज़ख्म नेजों (भालो) के थे, 34 घाव तलवारों के थे । ऐसे वक्त में जब दुश्मन फौज के सरदार ने पूछा कि कोई आखिर ख्वाहिश (इच्छा) हो तो बताओ, तो उस समय भी तलवारों के साये में कहा कि अस्र (सांय कालीन) की नमाज का वक्त हो गया है मुझे नमाज अदा कर लेने दो, तुम मेरा सर उस समय तन से जुदा करना (काटना) जब मैं अपने खुदा की बारगाह में सजदा कर रहा होऊं । इस घटना से साफ जाहिर हो जाता हैं कि नमाज एक सच्चे मुसलमान के लिए कितनी जरूरी है।
नमाज सच्चे मुसलमान के लिए मेअराज (बेश कीमती तोहफा) है
सभी इस्लामी अराकान जमीन पर फर्ज (आवश्यक) किए गए, मगर नमाज अपने बन्दों पर फर्ज (आवश्यक) करनी चाही तो परवर दिगार ने अपने प्यारे महबूब हूजूर ताजदारे मदीना को अर्शे आजम (आसमान) पर मेराज के लिए बुलाया और कहा कि आए हो तो अपनी उम्मत के लिए एक अजीम तोहफा ले जाओ। यह तोहफा था नमाज का और वह भी दिन में 50 वक्त अदा करने का। वापस आने पर मूसा अलैहिस्सलाम (पैगम्बर) ने कहा कि 50 वक्त की नमाज आपकी उम्मत के लिए ज्यादा होगी, कुछ कम करवा लो, इस तरह 50 से कम होते होते 5 वक्त की नमाज मुसलमान पर फर्ज की गई। जिसे मोमिन की मेअराज कहा जाता है।
पैगम्बर-ए-इस्लाम के आंखो की ठण्डक है नमाज
इस समय दुनिया में कुल 195 देश है। हर देश का जीएमटी समय (अन्तराष्ट्रीय मानक समय) अलग-अलग है, जिसका निर्धारण इंग्लेण्ड के ग्रीनिच में स्थित वैधशाला के द्वारा तय होता है। जिसके निर्धारण में हर देश में सूरज के उगने व डूबने के समय को आधार माना जाता है।
इस समय के अनुसार जब इंग्लैण्ड में रात के 12 बजते हैं तो हमारे देश भारत में सुबह के 5.30 बजते हैं। इसी तरह दुनिया के हर देश के समय में 1 मिनट से लेकर 23 घण्टे 59 मिनट तक का फर्क होता है।
इस आधार पर कहीं पर जब सूरज उगता हैं तो कहीं दोपहर हो चुकी होती है, कहीं शाम ढलने को होती है और कहीं रात का अंधेरा छा चुका होता है।
दुनिया के लगभग हर देश में मस्जिदें हैं और हर मस्जिद से अपने-अपने समय के अनुसार कहीं सुबह की फज्र की नमाज की अजान गूंज रही होती है उसी वक्त पर कहीं दोपहर की नमाज जोहर के लिए अजान दी जा रही होती है, कहीं शाम की अस्र की नमाज के लिए अजान बुला रही होती है, कहीं सूरज डूबने की आवाज मगरिब की नमाज के लिए मिल रही होती है और कहीं रात की नमाज इशा के लिए अजान के माध्यम से संदेश मिल रहा होता है। ये हर देश, हर इलाके में अपने-अपने हिसाब से होती है।
अजान दुनिया की एक ऐसी आवाज है जो हर वक्त कहीं न कहीं किसी न किसी वक्त की नमाज के लिए बुलंद होती रहती है, और जब अजान की आवाज गूंज रही है तो इसका मतलब भी साफ हो ही जाता हैं कि किसी न किसी नमाज का वक्त हो चुका होता है। इसलिए दुनिया में हर वक्त, हर क्षण, हर लम्हा जो इबादत होती है वह है नमाज। इसलिए रब के पैगम्बर ने इसे अपनी आंखों की ठण्डक करार दिया। यानि जो सच्चा मुसलमान तयशुदा वक्त पर पांच वक्त की नमाज पढ़ता है वह अपने रसूल की आंखों को ठण्डक पहुंचाता है।
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माशा अल्लाह बहुत खूब 💐 अल्लाह आपकी खिदमत कुबूल करे
जवाब देंहटाएंMasha Allah bahut khub janab👌
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन ओर बेहतर रचनात्मकता,
जवाब देंहटाएंAap Sabhi ka Bahut Bahut Shukriya
जवाब देंहटाएंशानदार प्रयास । सरल एवम सटीक भाषा का प्रयोग जो आम पाठक के समझने में सहायक। अल्लाह मजीद कामयाबी दे ।
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