कोरोना लॉकडाउन में कलक्टर ने दिखाया इंसानियत का जजबा
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राजस्थान के प्रति प्रेम व इंसानियत की अमूल्य निधि है - निधि चौधरी
राजस्थान की धरती त्याग, तपस्या और बलिदान के लिए मशहूर हैं। इतिहास गवाह है जब भी जरूरत पड़ी राजस्थान के लोगों ने देश के लिए हमेशा अपने आपको सबसे आगे रखा है। आजादी के समय से लगाकर आज तक जब भी देश को किसी भी रूप में जरूरत पड़ी है राजस्थानी हमेशा दो कदम आगे ही नजर आते हैं। राजस्थानी देश ही नहीं बल्कि दुनिया के हर कोने में नजर आते हैं। या यूं कहे -
जहां भी पहुंचे आग, हवा और पानी,
वहां नजर आ ही जाते हैं राजस्थानी।
आजादी के समय जंग का मैदान रहा हो या वर्तमान समय में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाला व्यापारिक क्षेत्र, शिक्षा का क्षेत्र हो या प्रशासनिक क्षेत्र। राजस्थानी हर जगह अपनी छाप छोड़ रहे हैं। किसी भी ऊंचे मकाम या पद पर पहुंच जाने के बाद भी उनमें इंसानियत जिंदा रहती है। वे राजस्थान की माटी की महिमा को बढ़ाने के लिए जी-जान से कोशिश करते हैं। बात जब अपनी जन्मभूमि की हो तो उनमें दर्द और लगाव अपने आप ही पैदा हो जाता है।
इन्हीं बातों को साकार करते हुए कोरोना वायरस महामारी कोविड19 के दौरान इंसानियत को बढ़ावा देने वाली एक घटना सामने आई। जिसमें राजस्थान की बेटी व महाराष्ट्र के रायगढ़ की जिला कलक्टर निधि चौधरी ने इंसानियत की मिसाल पेश की।
पाली जिले के बाली उपखण्ड के ग्राम सादड़ा निवासी जोताराम देवासी का परिवार महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के सरखेवाड़ी में लम्बे समय से मजदूरी कर जीवन यापन करता रहा है। किसी कारणवश जोताराम व उसकी पत्नी को आवश्यक कार्य के लिए महाराष्ट्र से अपने गांव सादड़ा आना पड़ा। उनके दो पुत्र 11 वर्षीय दिव्यांग पुत्र ललित राईका व एक 7 वर्षीय राकेश राइका को वे वहीं पर अपने पड़ोसी के सहारे छोड़ आए कि आवश्यक कार्य निपटाकर जल्द ही पुन: लौट आऊंगा। जोताराम देवासी को क्या मालूम था कि सर मुण्डाते ही ओले पड़ जाएंगे। उनके राजस्थान आने के बाद अचानक ही लॉकडाउन घोषित हो जाता है। जोताराम देवासी अपने ग्राम सादड़ा मैं फंस जाते हैं और उनके पुत्र महाराष्ट्र के रायगढ़ के सरखेवाड़ी में पड़ोसी के सहारे।
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रायगढ़ जिला कलक्टर निधि चौधरी |
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बालक ललित और राकेश |
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लेकिन समस्या तो जस की तस ही रही, क्योंकि परमीशन तो मिली मगर एक तरफा। केवल जाने के लिए वापस आने की नहीं। परिवार की आर्थिक स्थिति तो पहले से ही खराब थी। अब उनके सामने दो समस्या पैदा हो गई। पहली समस्या तो यह कि वह मुफलिसी में जाए कैसे ? उनकी इस पीड़ा को दूर करने के लिए भामाशाह भी सहयोग को तैयार हो गए। मगर अब दूसरी समस्या यह थी कि जैसे-तैसे वहां चले भी जाएं तो वहां जाकर गुजारा कैसे करें ? भामाशाह जो अपने व्हीकल से छोडऩे चलेगा, वह वापस कैसे आएगा? क्योंकि परमीशन केवल जाने की मिली थी। समस्या तो जस की तस। यानि आगे कुआ, पीछे खाई। जाए तो कहां जाए जोता भाई।
जब यह मार्मिक खबर संवाददाता चन्द्रशेखर अग्रवाल के माध्यम से राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित होती है। साथ ही समाचार प्रकाशन के बाद चन्द्रशेखर अग्रवाल ने नगर के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में सहायक अभियंता व नियंत्रण कक्ष प्रभारी के पद पर कार्यरत श्री सोमदत्त नेहरा से इस बारे में चर्चा कर उन्हें इस घटना से अवगत करवाते हैं।
श्री सोमदत्त नेहरा जब घटना से रूबरू होते हैं तो वे अपनी पुत्री निधि चौधरी जो वर्तमान में महाराष्ट्र के रायगढ़ में जिला कलक्टर के पद पर आसीन है। उससे बात कर विस्तार से घटना के बारे में जानकारी देते हैं।
जिला कलक्टर रायगढ़ निधि चौधरी तक पिता के माध्यम से घटना की जानकारी पहुंचती हैं तो उनके दिल में माटी के प्रति प्रेम उमड़ पड़ता है। वे तुरन्त कार्यवाही करते हुए रायगढ़ जिले के भीम नगर सरखेवाडी में लॉकडाउन के कारण मां-बाप के बिना 45 दिनों से अधिक समय से पड़ोसी के साथ रह रहे दोनों बालक ललित राईका दिव्यांग व राकेश राइका की कुशलक्षेम पता करती है।
साथ ही रायगढ़ जिला कलक्टर निधि चौधरी अपने निजी प्रयासों से एक प्रवासी राजस्थानी परिवार को प्रेरित कर जितेन्द्रसिंह राजावत भीटवाड़ा के साथ दोनों बालकों को बाली के लिए रवाना करती है। उनके बाली पहुंचने पर विधायक व पूर्व ऊर्जा मंत्री पुष्पेन्द्रसिंह राणावत, सहायक अभियंता सोमदत्त नेहरा, अधिवक्ता विरमदेवसिंह सादड़ा सहित गणमान्य नागरिकों के सान्निध्य में बालकों व लाने वाले जितेंद्रसिंह राजावत भीटवाड़ा का स्वागत किया जाता है।
पुत्रों के सकुशल घर पहुंचने पर उनके परिवार का तो खुशी के मारे ठिकाना नहीं रहता। वे खुशी में भाव-विभोर हो उठते हैं। उनका परिवार इस असमंजस की स्थिति में डूब जाता हैं कि वे इसके लिए अधिवक्ता विरमदेसिंह सादड़ा का धन्यवाद ज्ञापित करें या उपखण्ड अधिकारी श्रीनिधि बीटी का। संवाददाता चन्द्रशेखर अग्रवाल का शुक्रिया अदा करे या जलदाय विभाग के सहायक अभियंता सोमदत्त नेहरा का। जिन्होंने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से मानवता के नाते सहयोग किया।
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रायगढ़ से बालकों को लेकर लौटने पर बाली में स्वागत करते विधायक पुष्पेंद्रसिंह राणावत सहित अधिकारी और नागरिक । |
मगर इस कड़ी में हम राजस्थान की माटी का कर्ज चुकाने वाली रायगढ़ जिला कलक्टर निधि चौधरी को तो चाहकर भी सेल्यूट किए बिना नहीं रह सकते क्योंकि लॉकडाउन के समय में पूरे रायगढ़ जिले की प्रशासनिक व्यवस्थाओं को संभालने के साथ ही जिन्होंने गरीब परिवार की पीड़ा को स्वयं की पीड़ा महसूस करते हुए अधिकारिक व व्यक्तिगत तौर पर सहयोग कर लॉकडाडन के कारण 45 दिन से बिछड़े हुए परिवार को मिलाने का कार्य किया। उसे हमेशा याद रखा जाएगा। इस घटना से यह भी सिद्ध हो गया कि निधि चौधरी वास्तव में राजस्थान के प्रति प्रेम व सेवा की अमूल्य निधि है।
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बहुत शानदार और प्रेरणा लायक रचना ।
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंBahut acha likha h sir ji
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