जिंदगी में सकारात्मक सोच जरूरी है
जिन्दगी एक खुली किताब है। जिसमें रोजाना नित-नए अनुभव के पेज जुड़ते जाते हैं। इस किताब के बहुत सारे पेज तो साधारण घटनाओं से जुड़े होते हैं, जिनका कोई विशेष महत्व नहीं होता। मगर जिन्दगी की इस किताब के पन्नों में कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएं जुड़ जाती है। जिसे इंसान चाहकर भी भुला नहीं पाता। कई बार वे घटनाएं इंसान के दिमाग में घूमने लगती है और इंसान उन बातों की गहराई में खो जाता है, मगर चाहकर भी उन सवालों का जवाब ढूंढ नहीं पाता। ये घटनाऐं दुःख भरी, ख़ुशी वाली या ख़ुशी-गम वाली किसी भी तरह की हो सकती हैं ।
शिक्षक भर्ती के लिए बीएसटीसी करने वाले युवाओं का दो वर्षीय कोर्स तब तक पूरा नहीं होता, जब तक कि वे स्काउटिंग-गाइडिंग से सात दिवसीय बेसिक कोर्स सफलता पूर्वक पूरा नहीं कर लेते।
स्काउटिंग-गाइडिंग का यह सात दिवसीय कोर्स पूर्णतया आवासीय कैम्प होता है, जिसमें सभी छात्र-अध्यापक व छात्रा-अध्यापिकाओं को सात दिन तक कैम्प में रहकर विभिन्न शारीरिक व मानसिक परीक्षाओं का प्रशिक्षण प्राप्त कर परीक्षाओं को पास करना होता है।
ऐसे कई कैम्प में मुझे सहभागिता का अवसर प्राप्त हुआ है। यूं तो साधारण तरीके से युवक-युवतियां कैम्प में आते हैं, कैम्प की गतिविधियों में भाग लेकर सफलता प्राप्त कर अपने-अपने घरों को लोट जाते हैं।
मगर कभी-कभार ऐसे अवसर पर कोई ऐसी घटना घट जाती है, जो दिमाग पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है। जो गाहे-बगाहे स्मृति-पटल पर पुन: ताजा होकर चल-चित्र की तरह चलती रहती है।
ऐसे ही एक कैम्प की घटना है। कैम्प प्रारंभ हुआ। धीरे-धीरे समय के साथ गतिविधियां के सहारे कैम्प आगे बढ़ रहा थी। कैम्प में शिक्षण के अतिरक्त डोक्यूमेंट वेरिफिकेशन, रजिस्ट्रेशन, कागजी कार्यवाही के साथ कम्प्यूटर कार्य में मेरी ड्यूटी थी। इस कारण मुझे क्लास लेने के अवसर एक-दो बार ही मिले थे।
मेरा हमेशा से उद्देश्य यही रहा कि शिविरार्थियों में किसी भी माध्यम से ऐसी सकारात्मक सोच व आत्मनिर्भरता पैदा की जाए। जिससे वे घर की यादों को भूल कर कैम्प में पूरी तरह मन लगा सके।
इसी के तहत मैंने सीमित क्लास व अन्य गतिविधियों के माध्यम से कैम्प में भाग लेने वालों के मन में सकारात्मक सोच बढ़ाने का कार्य किया व मनोरंजन के साथ क्लासें ली। जिससे सभी अपने आपको तनाव रहित महूसस करने लगे।
इसी तरह एक-दो क्लास लेने व कैम्प की अन्य गतिविधियों को पूर्ण करते हुए जब रजिस्ट्रेशन सहित अन्य कार्य के लिए छात्रा-अध्यापिकाओं से पेपर कार्य पूर्ण करवा रहा था। अचानक से एक विचित्र घटना घटी।
एक छात्रा-अध्यापिका ने मेरे से पूछ लिया कि सर आपकी फैमिली तो बहुत खुश होगी ना आपसे ? मैं एकदम सकपका गया, ये कैसा सवाल है ?
उसका सवाल मुझे बड़ा अजीब लगा। मैंने प्रति-उत्तर में उसी से थोड़े गुस्से में पूछ लिया, क्या आपसे, आपकी फैमिली खुश नहीं हैं ?
मेरे इस सवाल पर उसकी आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे। कुछ समय तक वह कुछ नहीं बोली। मैंने भी मन में सोचा ऐसा क्या हुआ, या ऐसा क्या मैंने इससे पूछ लिया ? जो ये रोने लग गई ?
कुछ क्षण चुप रहने के पश्चात वह बोली। सर, आपके सवाल ने मेरी अतीत की यादों को कुरेद दिया। इसलिए सहसा आंखों से आंसू बहने लग गए।
मैंने फिर पूछा कैसी यादें ?
उसने दुखी मन से बताना शुरू किया आज से लगभग १० वर्ष पूर्व मेरा विवाह हुआ। ससुराल में मेरे पति व सास के अलावा कोई नहीं था। सास सरकारी अध्यापक है। इसी तरह पीहर में भी मेरे पिता के अलावा कोई नहीं है। मैं उनकी इकलौती संतान हूं।
शादी के बाद जिंदगी हंसी-खुशी के साथ बीत रही थी। दो वर्ष पश्चात एक बेटी ने जन्म लिया तो खुशियां और अधिक बढ़ गई। अब मेरी बेटी करीब 8 वर्ष की है।
इन हंसी-खुशी गुजर रही जिंदगी को न मालूम अचानक से कौनसा ग्रहण लग गया। मेरी जिंदगी की खुशियों को न जाने किसकी नजर लगी, कि एक भूचाल सा आ गया। कुछ समय पूर्व मेरे पति की किसी ने हत्या कर दी। उस घटना से मुझे बहुत बड़ा आघात लगा। बहुत ही मुश्किल से मैं संभल पाई हूं।
इस दु:खद घटना के बाद पीहर में पिता व ससुराल में सास को दु:ख सहन करने का संबल प्रदान कर बेटी व बहू दोनों की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हूं। पति की हत्या के केस को भी हैंण्डल कर रही हूं। इसके साथ ही अपने-आपको बिजी रखने के लिए प्राइवेट विद्यालय में पढ़ाने का कार्य भी कर रही हूं।
एक साथ इतनी जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते जीवन में बहुत तनाव पैदा हो गया था। साथ ही कैम्प में भी लगातार चलने वाली शारीरिक व मानसिक क्लासों में पूरी तरह से मन नहीं लग रहा था।
मगर आपकी ली गई क्लासें मेरे जीवन में सकारात्मक सोच पैदा करने के साथ चेहरे पर खुशी लाने का कारण भी बनी। कुछ समय के लिए मैं अपने सारे गम भूल गई थी। मुझे अपनी पुरानी जिंदगी की यादें ताजा हो आई थी।
इसलिए सहसा मैंने पूछ लिया कि जब आप इतने सीमित समय में सभी के चेहरों पर रौनक ला सकते हो तो, आपके परिवार के चेहरों पर तो हमेशा रौनक ही रहती होगी ?
इस तरह बाते करते हुए उसके चेहरे पर फिर से रौनक लौट आई, तब मेरे भी जान में जान आई। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी बुझते हुए चराग में फिर से रोशनी लौट आई हो।
मैंने कहा कि जिन्दगी में इंसान को कई तरह के इम्तिहान देने पड़ते हैं। उनका सामना हमेशा सकारात्मक सोच के साथ कार्य करना चाहिए। साथ ही हमेशा चेहरे पर मुस्कान रखने की आदत डालनी चाहिए। क्योंकि -
जिन्दगी में जीना जरूरी नहीं,
जीने का अंदाज जरूरी है
सीने में चाहे लाख गम हो
मगर चेहरे पर मुस्कान जरूरी है।
और जिन्दगी में मुस्कान बहुत कीमती है, इसलिए कहा भी गया है -
या तो दीवाना हंसे, या जिसे खुदा तौफिक दे,
वरना इस जहां में मुस्कुराता कौन है ?
शिविर समाप्ति के अवसर पर वापस घर लौटते समय मुझे यह कहकर गई कि ''शायद मैं आपको याद रख पाऊं या नहीं, मगर आपके वे शब्द जिन्होंने मेरे जीवन में सकारात्मक सोच व नई ऊर्जा का संचार किया है उन शब्दों को मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी।''
उसके इन शब्दों से मुझे बहुत खुशी हुई कि जाने-अनजाने में किसी की जिन्दगी में कुछ खुशी के पल ला सका। इससे बड़ा कोई और कोई काम हो ही नहीं सकता।
इस अवसर पर मुझे निदा फाजली की सहसा वे लाइनें याद आ गई -
बुझते हुए सूरज से
चरागों को जलाया जाए
घर से मस्जिद है बहुत दूर
यूं कर ले
किसी रोते हुए को हंसाया जाए।
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